संजीवनी वटी के लाभ और हानि (Sanjeevani Vati ke Labh Aur Hani)
संजीवनी वटी के अनेक फायदे हैं। बुखार, उल्टी, पाचनतंत्र, मूत्र रोग और पेट के रोगों में लाभ पहुंचाती है संजीवनी वटी। सांप के काटने पर उपयोगी है संजीवनी वटी।
संजीवनी वटी के फायदे, उपयोग, घटक द्रव्य, खुराक, और नुकसान - Benefits of Sanjeevani Vati in Hindi
संजीवनी वटी के लाभ और हानि |
आयुर्वेद में संजीवनी वटी के बारे में बहुत सारी अच्छी बातें लिखी हुई हैं। संजीवनी वटी के इस्तेमाल से आप एक-दो नहीं बल्किक कई रोगों का इलाज कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि आप संजीवनी वटी का उपयोग कैसे कर सकते हैं।
संजीवनी वटी क्या है? (What is Sanjivani Vati in Hindi?)
- संजीवनी वटी एक प्रमुख विषरोधी (Anti toxic) आयुर्वेदिक औषधि है। संजीवनी वटी सांप के काटने पर विष को खत्म करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। इसके अलावा संजीवनी वटी कीटाणु एवं बुखार को भी ठीक करती है।
- यह अपच से पैदा हुए दोष को ख़त्म करती है। वत्सनाभ (बच्छनाग) की प्रधानता होने के कारण यह कुछ गरम, और पसीना तथा पेशाब को बढ़ाने का काम करती है। इन्हीं गुणों के कारण यह वटी बुखार की अवस्था में पसीने के रास्ते और पेशाब के रास्ते बुखार को बाहर निकाले में मदद करती है।
संजीवनी वटी के फायदे (Benefits of Sanjeevani Vati in Hindi)
संजीवनी वटी (sanjeevni vati) का इस्तेमाल ऐसे किया जा सकता हैः-
मूत्र रोग में संजीवनी वटी का इस्तेमाल लाभदायक (Sanjivani Vati Benefits for Urinal Disorder in Hindi)
मूत्र रोग में संजीवनी वटी का लाभदायक |
अनेक लोग मूत्र रोग से परेशान रहते हैं। इसमें संजीवनी वटी का उपयोग करना चाहिए। मूत्र रोग जैसे पेशाब कम आने की समस्या में संजीवनटी वटी फायदेमंद होती है। यह पेशाब को साफ करने का काम भी करती है।
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बुखार उतारने में संजीवनी वटी का उपयोग फायदेमंद (Sanjeevani Vati Uses in Fighting with Fever in Hindi)
- संजीवन वटी का इस्तेमाल बुखार को ठीक करने के लिए भी किया जाता है। मौसमी बुखार या पेट की गड़बड़ी के कारण आने वाले बुखार को ठीक करने में संजीवनटी वटी मदद करती है।
- लगातार हल्का बुखार या मोतीझरा रोग (टॉयफॉयड) में इसकी एक–एक गोली लौंग के जल से साथ लें।
- इसके अलावा आप सोंठ, अजवायन तथा सेन्धा नमक तीन–तीन ग्राम लेकर जल के साथ पीस लें। इसे दोबारा जल में मिलाकर थोड़ा-सा गरम कर लें। इसके साथ लें। इससे विकार नष्ट होते हैं और बुखार ठीक समय पर उतर जाता है।
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पाचनतंत्र विकार या अपच की समस्या में संजीवनी वटी का सेवन (Benefits of Sanjeevani Vati for Indigestion in Hindi)
अपच की समस्या में संजीवनी वटी का सेवन |
- अत्यधिक खाने से या बिना भूख के भोजन करने से, या दूषित पदार्थ को खाने से पाचन–क्रिया में खराबी होने पर अपच हो जाती है, जिसके कारण पेट में दर्द, पेट में भारीपन, पतला व अनपचा दस्त, कम मात्रा में मूत्र आना तथा वमन (उल्टी) होना आदि हो जाते हैं।
- ऐसी स्थिति होने तो दो–दो वटी (गोली) एक–एक घण्टे के बाद देनी चाहिए। इससे अधिक भयंकर अवस्था होने पर चार–चार गोली आधा–आधा घण्टे के बाद देने से लाभ होता है।
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पेट के रोगों में करें संजीवनी वटी का सेवन (Uses of Sanjivani Vati in Abdominal Diseases in Hindi)
- पाचन कमजोर होने पर पेट में आम यानी अनपचा भोजन जमा हो जाता है, इससे बुखार भी हो जाता है। ऐसे में पेट में भारीपन के साथ-साथ थोड़ा–थोड़ा दस्त होने लगता है। इसके साथ ही बुखार बढ़ना, पसीना न आना, बेचैनी, सिर और पेट में दर्द भी आदि होने लगते हैं। इस अवस्था में संजीवनी वटी का प्रयोग बहुत लाभकारक होता है। इसके साथ–साथ यह पाचक रसों को उत्पन्न कर अपच को ठीक करती है।
- संजीवनी वटी पसीना की कमी को दूर करती है। सांप के विष, कीटाणु एवं बुखार को नष्ट करती है। यह आमदोष को भी ठीक करती है, और आमदोष से होने वाले बुखार, हैजा, आदि रोगों को भी नष्ट करती है। यह पसीना एवं मूत्र द्वारा अन्दर के मलदोष भी बाहर कर देती है।
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उल्टी रोकने और दस्त बंद करने के लिए संजीवनी वटी का प्रयोग लाभदायक (Sanjeevani Vati Stops Diarrhea in Hindi)
उल्टी रोकने बंद करने के लिए संजीवनी वटी लाभदायक |
यह वटी आमदोष को ख़त्म करते हुए उल्टी व दस्त को भी बन्द कर देती है।
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सांप के काटने पर संजीवनी वटी के प्रयोग से लाभ (Sanjivani Vati is Beneficial for Snake Bite in Hindi)
आप सांप के काटने पर संजीवनी वटी का प्रयोग कर सकते हैं। यह सांप के विष को खत्म करने में मदद (divya sanjivani vati benefits) पहुंचाती है।
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संजीवनी वटी की खुराक (Doses of Sanjivani Vati in Hindi)
संजीवनी वटी का उपयोग इतनी मात्रा में करनी चाहिएः-
125 मिली ग्राम,
अनुपान- अदरक का रस, हल्का गर्म पानी
संजीवनी वटी के बारे में आयुर्वेद में उल्लेख (Sanjeevani Vati in Ayurveda in Hindi)
संजीवनी वटी के बारे में आयुर्वेदिक ग्रंथों में कहा गया है –
विडङ्गं नागरं कृष्णा पथ्यामलबिभीतकम्।।
वचा गुडूची भल्लातं सविषं चात्र योजयेत्।
एतानि समभागानि गोमूत्रेणैव पेषयेद्।।
गुञ्जाभा गुटिका कार्या दद्यादार्द्रकजै रसै।
एकामजीर्णगुल्मेषु द्वे विषूच्यां प्रदापयेत्।।
तिस्रश्च सर्पदष्टे तु चतस्र सान्निपातिके।
वटी सञ्जीवनी नाम्ना सञ्जीवयति मानवम्।। शारंगधर संहिता (म.ख. 7/18-21)
संजीवनी वटी के घटक (Composition of Sanjivani Vati in Hindi)
- विडंग (Embelia ribes Burm.) - फल
- नागर (शुण्ठी) (Zingiber officinale Rosc.) - कन्द
- कृष्णा (पिप्पली) (Pipper longum Linn.) - फल
- पथ्या (हरीतकी) (Terminalia chebula Retz.) - फली
- आमला (Emblica officinalis Gaertn.) - फला
- बिभीतक (Terminalia bellirica Roxb.) - फला
- वच (Acorus caloamus Linn.) - कन्द
- गुडुची (Tinospora cordifolia (willd) - तना
- भल्लातक शुद्ध (Semecarpus anacardium Linn.) - फल
- विष(वत्सनाभ)(Aconitum ferrox wallex Seringe.) - मूलकन्द
- गोमूत्र
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