गुँजा से उपचार और सेवन का तरीका : Gunja (Ratti) Ke Fayde
रत्ती एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है, जिसका इस्तेमाल आयुर्वेद की औषधि के रूप में किया जाता है। चलिए जानते हैं इसके फायदे और नुकसान
गुँजा (रत्ती) के फायदे व उपचार : Gunja (Ratti) Ke Fayde Aur Upchar
गुँजा के फायदे व उपचार |
आयुर्वेद में अनेको दिव्य जड़ी बुटिया है। उनमें से गुँजा भी एक है। गुँजा बहुत ही गुणकारी औषधि है। इसके कई फायदे (Gunja Ke Fayde) है। आज के इस article में हम गुँजा से होने वाले उपचार (Gunja se upchar) और उसके फायदे के बारे में विस्तार से जानने वाले है। तो चलिए शुरू करते है।
गुँजा क्या है (What is Gunja?)
Gunja आयुर्वेद का ऐसा आयुर्वेदिक औषधि है जिसके अनेको फायदे (Gunja Ke Fayde) है । गुंजा को रत्ती के नाम से भी जाना जाता है। गुँजा से कई प्रकार की रोग को आसानी से ठीक किया जा सकता है।
भारतीय संस्कृति में इसका इस्तेमाल काफी प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। गुँजा की कई प्रकार की प्रजातियाँ भी होती है। जिनका उपयोग अलग अलग प्रकार से किया जाता है। जो इस प्रकार है –
गुँजा की प्रजातिया (Types of Gunja)
1. लाल गुँजा
इसमें पहला है लाल गुँजा, इस गुँजा में लाल और काले रंग का मिश्रण होता है और इसका इस्तेमाल औषधि के रूप में कम तथा तांत्रिक क्रियाओ में ज्यादा होता है।
2. सफेद गुँजा
इसमें सफेद और काले रंग का मिश्रण होता है और इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक उपचार में ज्यादा होता है। तांत्रिक इसका भी इस्तेमाल तांत्रिक क्रियाओ में करते है। यह एक दुर्लभ प्रजाति में आता है।
3. काला गुँजा
यह बहुत ही दुर्लभ है और बहुत कम पाया जाता है औषधि के रूप में इसका इस्तेमाल नहीं होता है पर त्रंत्र क्रिया में इसका इस्तेमाल बहुत किया जाता है।
4. पीला गुँजा
यह अति दुर्लभ होती है क्योकि यह लाल और सफेद प्रजाति के गुँजा में कोई अनुवांशिक बिकृति के कारण होती है।
गुँजा का पहचान व स्वरूप (Identification and Description of Gunja)
Gunja एक बारहमासी पौधा है। इसके पत्ते संयुक्त पक्षाकार होते है। इसके फूल श्वेत या गुलाबी रंग के होते है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। प्रत्येक फली में 4-5 गुंजा के बीज निकलते हैं। गूंजा के बीज चमकीले सिंदूर वर्ण अथवा श्वेत रंग के काले दागदार होते है।
गुँजा का प्रयोज्य अंग (Usable part of Gunja)
औषधि के रूप में गुँजा (रत्ती) का मुख्यतः मूल, पत्र तथा बीज का प्रयोग होता है।
गुँजा का स्वाद (Tasts of Gunja)
रत्ती का स्वाद तिक्त (तीखा) Bitter होता है।
गुँजा के अन्य नाम (Name of Gunja)
गुँजा के अन्य नाम |
- Famous : गुँजा (रत्ती)
- Botanical : Abrus Precatoris. Linn. Fabaceae Leguminosae
- Hindi : रत्ती, गुंजा, चौंटली, घुंघुची
- Sanskrit : कृष्णला, रक्तकाकचिंची, सफेद केउच्चटा
- English : Jaquirity, Coral Bead
- Bengali : श्वेत कुच, लाल कुच
- Marathi : गुंज
- Gujarati : धोलीचणोरी, राती, चणोरी
- Telugu : गुलुविदे
- Persian : चश्मेखरुस
- Others Name: Rosary Pea, Crab’s Eye, Paternoster Pea, Love Pea, Precatory Pea, Bean, Prayer Bead, John Crow Bead, Coral Bead, Red Bead Vine, Country Licorice, Indian Licorice, Wild Licorice, Jamaica Wild Licorice, Akar Saga, Coondrimany, Gidee Gidee, Jumbie Bead, Ratti, Rettee, Retty and Weather Plant कहा जाता है।
गुँजा का गुण, दोष और प्रभाव (Properties, defects and effects of Gunja)
Gunja में अतिरेचक, वामक, ब्लयवर्धक (ताकत बढ़ाने वाला) बाजीकर तथा उद्ववेष्टहर गुण पाये जाते है। इसमें ज्वर, वात तथा पित को ठीक करने के गुण होते है यह पेट के कीड़े, खुजली, तृषा के लिए भी लाभकारी होता है।
गुँजा का रासयनिक संगठन (Gunja Chemical Constituents)
गुंजा (रत्ती) के पत्ते, बीज तथा मूल में कई प्रकार के रासायनिक संगठन पाये जाते है जैसे –
- ल्युपियोल एसीटेट (Lupeol Acetate)
- सिटोस्टिरोल (Sitosterol)
- सुक्रोज (Sucrose)
- गैलिक अम्ल (Gallicacid)
- ओरीऐन्टिन (Orientin)
- आइसाेओरिएन्टिन (Isoorientin)
- ऐबरूसिक अम्ल (Abrussic Acid)
- हिमाग्लूटिनिन (Haemagglutinin) पाए जाते है।
इसके मूल में –
- स्टीग्मास्टीरोल (Stigmasterol)
- ग्लायसीन (Glycine)
- ग्लुटामिक अम्ल (Glutamicacid)
- ऐस्पारटिक अम्ल (Asparticacid)
- टायरोसीन (Tyrosin)
- क्वेरसेटिन (Quercetin)
- ल्यूटियोलिन (Luteolin)
- किमफेराल (Kaempferol)
- टेक्साल्बुमिन (Taxalbumin)
- एल्केलॉयड ऐब्रिन (Alkaloid Abrain)
- मोनोग्लुकोसिडिक (Monoglucosidic)
- ऐन्योसायनीन एब्रानीन (Anthocyanin Abranin)
- ग्लुकोसाईड-ऐबरानीन (Glucoside Abralin) पाए जाते है।
गुँजा के पत्तों में –
- प्रिकॉल (Precol)
- एबरॉल (Abrol)
- ऐब्रासिन (Abrasine)
- प्रिकेसीन (Precasine) पाए जाते है।
गुँजा के फायदे व उपचार (Gunja ke fayde aur Upchar)
Gunja के फायदे और उपचार की विधियाँ इस प्रकार हैं –
वीर्यविकार दूर करने के लिये (Gunja use in Ejaculatory)
वीर्यविकार दूर करने के लिये |
गुंजा (Gunja) के मूल को जो की लगभग २ माशा होना चाहिये ताजे दूध में पकाकर रात में भोजन से पूर्व लेने से वीर्यविकार २ से ३ महीने में ठीक हो जाता है।
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श्वेत कुष्ठ रोग में फायदेमंद (Gunja ke fayde in White leprosy)
गुंजा (Gunja) के पत्तो का स्वरस चित्रक के मूल (जड़) में मिलाकर प्रयोग (बाह्य) करने से श्वेत कुष्ठ ठीक हो जाता है।
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गंजापन दूर करने के लिये (Gunja use in Baldness)
गंजापन दूर करने के लिए गुंजा (Gunja) एक बहुत ही शक्तिशाली औषधि है। रत्ती का चूर्ण ताजे जल में मिलाकर सर पर बार बार लेप करने से सिर पे पुनः बाल है। यह बालो की मोटाई को भी बढ़ाता है।
स्वरभंग में फायदेमंद (Gunja use in Hesitation)
गुंजा (Gunja) के ताजे और हरे पत्ते कंकोल के साथ चबाने से स्वरभंग में लाभ होता है।
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शूलहर में लाभकारी (Gunja use in Colic)
शूलहर में लाभकारी |
इसमें गुंजा (Gunja) के पत्ते का ताजा स्वरस लेने से शूलहर में लाभ होता ही।
वातिक रोग में फायदेमंद (Gunja ke fayde in Arthritis)
गुंजा (Gunja) के सफेद फल का चूर्ण सुबह साम लेने से वातिक में लाभ पहुँचता है।
गर्भनिरोधक के रूप में (Gunja use in Contraceptive)
गुंजा (Gunja) के ताजा स्वरस में गर्भनिरोधक गुण होते होते है इसीलिए संतान की कमान रखने वाली महिलाओं को इसका इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए।
कण्डु रोग में- (Gunja use in Tuberculosis)
गुंजा (Gunja) का चूर्ण और भृंगराज का रस आपस में मिलाकर , तेल सिद्ध करके इस तेल का प्रलेप करने से कण्डु रोग ठीक होता है।
गण्डमाल में फायदेमंद (Gunja use in Goiter Disease)
गण्डमाल में फायदेमंद |
इसमें गुंजा (Gunja) का फल लगभग 500 ग्राम और गुंजा का मूल लगभग 500 ग्राम का क्वाथ बनाकर और इससे सिद्ध तेल का नस्य एवं अभ्यंग करने से गण्डमाल ठीक होता है।
गृध्रसी रोग में (Gunja Ke Fayde in Sciatica)
रत्ती (Ratti) के कल्क का सायटिका नाड़ी पे लेप करने से गृध्रसी ठीक होती होती है और वेदना कम होती है।
नेत्र तिमिर में (Gunja use in Eye Blackness)
इसमें गुंजा (Gunja) के मूल का स्वरस का नस्य देने से नेत्र तिमिर ठीक होता है।
शिरो रोग में (Gunja use in Shiroroga)
सभी प्रकार के शिरो रोग में रत्ती (Ratti) के मूल का स्वरस का नस्य देने से ठीक होता है।
दंतकृमि में (Gunja use in Dental worms)
दंतकृमि में |
रोज गुंजा (Gunja) के मूल का दातुन करने से दांत में मौजूद सभी प्रकार के कृमि नष्ट हो जाते है।
कंठ शोथ में (Gunja use in Sore throat)
रत्ती (Ratti) के ताजे और हरे पत्ते कंकोल के साथ चबाने से जो रस गले से निचे उतरता है उससे कंठ शोथ में लाभ होता है।
वाजीकरणार्थ हेतु (Gunja use as Aphrodisiac)
कहा जाता है कि गुंजा (Gunja) के फल को दूध में पकाकर निस्तुप्त करके उसका चूर्ण बनाकर नियमित रूप से प्रातः सायं दूध के साथ सेवन करने से मनुष्य सशक्त होकर अच्छी तरह से संभोग कर सकता है।
स्वरभेद में (Gunja use in Svarabhed)
गुंजा (Gunja) के ताजे और हरे पत्ते कंकोल के साथ चबाने से जो रस गले से निचे उतरता है उससे स्वरभेद ठीक होता है।
मूत्रकृछ में (Gunja use in Urinary incontinence)
मूत्रकृछ में |
इसमें श्वेत गुंजा (Gunja) के ताजे पत्ते का चूर्ण को जीवन्ती के मूल का चूर्ण,श्वेत जीरक के चूर्ण एवं सिता के चूर्ण साथ मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
त्वक रोग में (Gunja use in Dermatitis)
रत्ती (Ratti) के पत्ते और चित्रक के मूल का कल्क बनाकर प्रयोग करने से लाभ होता है।
रक्तपित में (Gunja use in Raktpitta)
इसमें श्वेत गुंजा (Gunja) के ताजे पत्ते का चूर्ण को जीवन्ती के मूल का चूर्ण,श्वेत जीरक के चूर्ण एवं सिता के चूर्ण साथ मिलाकर सेवन करने से रक्तपित में लाभ होता है।
पुरानी खासी में लाभकारी (Gunja Ke Fayde in Chronic cough)
रत्ती (Ratti) के मूल का प्रवाही क्वाथ बनाकर पीने से पुरानी खासी में लाभ होता है।
संधिवात वेदना में फायदेमंद (Gunja use in Rheumatism)
संधिवात वेदना में फायदेमंद |
जिस स्थान पे वेदना होती है उस स्थान पे गुंजा (Gunja) के ताजे पत्तों को सरसो के गर्म तेल में डुबोकर बांधने से बहुत लाभ होता है।
गर्भपात करने में (Gunja use in Abortion)
गुंजा (Gunja) का ताजा स्वरस गर्भपात कराने में सक्षम होता है इसीलिए इसका इस्तेमाल महिलाओं को सावधानी से करना चाहिए।
गुँजा के सेवन की मात्रा (How Much to Consume Gunja?)
विशेष परिस्थिति को छोड़कर अगर आप गुंजा के मूल या पत्र का चूर्ण इस्तेमाल कर रहे है तो १ – ५ ग्राम तक करना चाहिए। वही बीज का चूर्ण इस्तेमाल कर रहे है तो 60 – 180 मिलीग्राम करना चाहिए।
गुंजा का हानिकारक प्रभाव (Gunja se nuksan)
Gunja का इस्तेमाल विभिन रोगो में किया जाता है और यह काफी लाभकरी वनौषधि है। और इसका कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता है। परन्तु आयुर्वेद में यह कहा जाता है कि अगर आप इसके बीज का इस्तेमाल कर रहे हो। तो इसको शोधन क्रिया द्वारा शोध कर ही इस्तेमाल करना चाहिए। क्योकि इसमें विष की मात्रा होती है जो नुकसान पहुंचा सकती है।
गुँजा के सेवन का तरीका (How to Use Gunja ?)
गुंजा के बीज का प्रयोग सीधे नहीं करना चाहिए क्योकि इसमें विष का प्रभाव होता है। जोकि वामक और विरेचक होता है। हमेसा इसका शोधन कर के ही इस्तेमाल करना चाहिए।
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